बनते शहर पर बिगड़ी राजनीति

आंध्र प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी को इस हफ्ते पद संभाले हुए 100 दिन पूरे हो जाएंगे। उन्होंने राज्य विधानसभा चुनाव में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के मुखिया चंद्रबाबू नायडू को हराकर...

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बनते शहर पर बिगड़ी राजनीति
Govind एस श्रीनिवासन, वरिष्ठ पत्रकार, दक्षिण एक्सप्रेस
Tue, 3 Sep 2019 12:32 AM

आंध्र प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी को इस हफ्ते पद संभाले हुए 100 दिन पूरे हो जाएंगे। उन्होंने राज्य विधानसभा चुनाव में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के मुखिया चंद्रबाबू नायडू को हराकर सत्ता हासिल की है। इस उपलब्धि से जगनमोहन को अपने दिवंगत पिता वाई एस आर रेड्डी की राजनीतिक विरासत सफलतापूर्वक हासिल हुई। जगनमोहन ने न सिर्फ टीडीपी से कुरसी छीनी, बल्कि कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों को भी पीछे छोड़ दिया। लेकिन सवाल यह है कि क्या वह अपना रुतबा बरकरार रख सकेंगे?

सौ दिनों के उनके कामकाज का लेखा-जोखा यदि एक शब्द में किया जाए, तो वह है ‘बदला’। जगनमोहन शायद अपने गृहनगर रायलसीमा की सियासत दोहरा रहे हैं, जो बदले की राजनीति के लिए बदनाम है। ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने पिछले मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू द्वारा लिए गए सभी फैसलों को खत्म करने का इरादा बांध लिया है। नायडू का सबसे बड़ा सपना अमरावती को ‘अंतरराष्ट्रीय राजधानी’ बनाने का रहा है, जो सिंगापुर या कुआलालंपुर को टक्कर देती। उनकी सोच एक ‘स्मार्ट शहर’ बनाने की थी, जो पूरे राज्य और क्षेत्र के विकास का इंजन होता। उन्होंने विशाल कृषि भूमि को विभिन्न केंद्रों में ढालने की योजना बनाई, जो राष्ट्र के लिए भी ईष्र्या के विषय होते। उन्होंने एजुकेशनल हब, प्रौद्योगिकी हब, विज्ञान, अनुसंधान और इनोवेशन हब, वाणिज्य व व्यापार हब, औद्योगिक हब, परिवहन व शिपिंग हब जैसी तमाम योजनाएं बनाईं। वह एक ऐसी अर्थव्यवस्था के हिमायती रहे, जो इस क्षेत्र को नई ऊंचाई तक ले जाती।

मगर जगनमोहन रेड्डी ने नायडू के सपने की हवा निकाल दी और चुनाव में उन्हें जमीन पर ला पटका। अब वह उनके द्वारा लिए गए फैसलों को भी विफल करने की कोशिश कर रहे हैं। हालात ये हैं कि अमरावती अधर में है और किसी को नहीं पता कि यह परियोजना आगे बढ़ेगी, पीछे जाएगी या फिर यथावत बनी रहेगी। किसी भी नए राज्य को एक राजधानी की जरूरत होती है, ताकि उसका प्रशासन कुशलतापूर्वक चल सके। राज्य सचिवालय आकार ले रहा है, सरकारी अधिकारियों के लिए क्वार्टर करीब-करीब पूरे होने वाले हैं, विधानसभा भवन का काम भी प्रगति पर है। मगर इन परियोजनाओं के साथ जगनमोहन क्या करना चाहते हैं, इस पर कोई स्पष्ट राय जाहिर करने की बजाय वह ऐसा रुख अपना रहे हैं, जिससे निवेशक भ्रम की स्थिति में हैं।
अमरावती के साथ वह क्या करना चाहते हैं, इस पर भी उन्होंने अब तक कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है। हर कोई जानता है कि यह निर्माणाधीन शहर सूबे की नई राजधानी है। चूंकि इन परियोजनाओं में ढेर सारा पैसा लगा है, इसलिए इससे कोई पीछे नहीं हट सकता। मगर सियासी संकीर्ण सोच कुछ भी कर गुजरने पर आमादा होती है। जगनमोहन सिर्फ और सिर्फ चंद्रबाबू नायडू को बदनाम करने की राजनीतिक मंशा के तहत इन परियोजनाओं को लटकाना चाहते हैं और पिछली सरकार के फैसलों में मीन-मेख निकाल रहे हैं।

जगनमोहन की पार्टी वाईएसआरसीपी के नेताओं के ऐसे बयान आए हैं कि नई सरकार ‘राज्य के सर्वांगीण विकास’ में विश्वास रखती है, न कि केवल एक शहर के। यानी, राज्य सरकार केवल अमरावती पर ध्यान नहीं देगी, बल्कि सूबे के हर क्षेत्र का विकास सुनिश्चित करेगी। बेशक इस सोच पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन इस बयान का अंतर्निहित संदेश अमरावती के भविष्य पर चुप्पी भी है। यहां परियोजनाएं कम की गई हैं, नायडू की भव्य योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है और शायद ठेकेदार भी बदले गए हैं। कुछ मामलों में परियोजनाओं को कम धनराशि आवंटित की जा रही है। अमरावती के अलावा, जगनमोहन सरकार पूर्ववर्ती नायडू सरकार द्वारा तैयार बिजली खरीद समझौतों (पीपीए) को बदलने की कोशिश कर रही है। यह सरकार मछलीपट्टनम और पोलावरम सिंचाई परियोजना पर किए गए फैसलों को भी बदलने के लिए प्रयासरत है। केंद्र ने इन तीनों मसलों पर आपत्ति जताई है और राज्य सरकार को इनमें फेरबदल न करने की सलाह दी है। मगर केंद्र की सलाह को नजरंदाज करते हुए जगन सरकार ने इन सभी परियोजनाओं को अपने हाथों में ले लिया है।
आंध्र की राजनीति को करीब से देखने वाले विश्लेषको की मानें, तो जगनमोहन सिर्फ बदले की नीयत से ये सब कर रहे हैं। चूंकि चंद्रबाबू नायडू सरकार के दौरान ही जगन 16 महीने तक जेल में रहे, इसलिए यह माना जाता है कि वह चंद्रबाबू से गहरी दुश्मनी पाल रहे हैं। जगनमोहन कई मुकदमों का सामना कर रहे हैं, जिनमें कथित तौर पर भ्रष्टाचार और धन के दुरुपयोग का मामला भी है।

जगन के कई व्यावसायिक हित रहे हैं, जो आज भी बदस्तूर जारी हैं। उनका परिवार मीडिया, इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण, रियल एस्टेट और बिजली परियोजनाओं से जुड़ा हुआ है। अपने पिता के शासन के दौरान उन पर बड़े पैमाने पर फायदा लेने का आरोप लगा था। उनका कारोबारी साम्राज्य कथित तौर पर कई लेन-देन वाली व्यवस्थाओं पर खड़ा है। उन पर अब भी सीबीआई और ईडी के मामले चल रहे हैं, जो उनके खिलाफ हैं। इसी कारण जगनमोहन आज कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं। उन्हें भाजपा से मिल रही राजनीतिक चुनौतियों से भी पार पाना होगा, क्योंकि फिर से उठ खड़ी हो रही यह पार्टी उन्हें लगातार पीछे धकेल रही है। यही वजह है कि उन्हें आनन-फानन में यह घोषणा करनी पड़ी कि प्रसिद्ध बालाजी मंदिर को संचालित करने वाले बोर्ड तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के शीर्ष पद सिर्फ हिंदुओं से भरे जाएंगे।

यह सब आंध्र प्रदेश के लोगों को कहां ले जाता है? जो राज्य साल 2014 में दो हिस्सों में बांटा गया, ताकि तेलंगाना की उम्मीदें पूरी हों, वह खुद अधर में है। राज्य बंटवारे को दोनों राज्यों की समस्याओं के रामबाण इलाज के रूप में पेश किया गया था, जो कि भाषायी रूप से एक ही था, पर क्षेत्रीय विकास के नाम पर जिसने अलग-अलग राहें चुनीं। मगर आंध्र प्रदेश का नेतृत्व विकास के उस वादे को पूरा करने से दूर संकीर्ण राजनीति में लिप्त है। यदि बदला लेने की यह प्रवृत्ति जारी रही, तो विकास का सपना यहां दिवास्वप्न ही साबित होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
 

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