कोरोनाकाल में स्वास्थ्य सेवाएं भी प्रभावित हुई हैं। अस्पतालों में ओपीडी में मरीजों की संख्या कम होने एवं ऑपरेशन कम होने से दवाओं का कारोबार भी 40 फीसदी तक कम हो गया है। पिछले साल जुलाई से सितंबर और इस साल इस अंतराल के आंकड़ों के अनुसार, दवा कारोबारियों की हर माह 200 से 250 करोड़ की दवा कम बिकी है।
जबकि पिछले साल 500 से 600 करोड़ रुपये का कारोबार हर माह होता था। दवा कंपनियां में उत्पादन 40 से 50 फीसदी तक घटा है। इस दौरान दवाओं की कीमतों में पांच से दस फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। विटामिन एवं जिंक की दवाओं में कुछ कंपनियों ने 20 से 25 फीसदी तक दाम बढ़ाए हैं।
देहरादून में कोरोना की वजह से सरकारी एवं निजी अस्पतालों में पिछले साल के मुकाबले ओपीडी एवं ऑपरेशनों में 40 से 50 फीसदी तक कमी दर्ज की गई। इसका सीधा असर दवा कारेाबार पर भी पड़ा है। देहरादून जिले में दवा की बिक्री कोरोनाकाल में 40 फीसदी तक कम हो गई है।
लॉकडाउन जब लगा तो जरूर मेडिकल स्टोर पर भीड़ दिखाई दी, क्योंकि लोग उस दौरान दहशत में थे। लेकिन लॉकडाउन जब लंबा खिंचा और लोग घरों में कैद हो गये। तो अस्पतालों में जाना भी बंद हो गया। जिसके बाद केवल कोविड से जुड़ी दवाओं एवं मास्क, सेनेटाइजर, थर्मामीटर और ग्लवस, ग्लूकोमीटर आदि की ही डिमांड मार्केट में रही।
दवाओं के एक्सपायर होने से दोहरा नुकसान : दवा कारोबारियों को दवा की बिक्री कम होने से तो नुकसान उठाना पड़ ही रहा है, इसके अलावा उन्हें दुकानों के लंबे समय से बंद होने की वजह से दवाओं के एक्सपायर होने का भी खतरा बना रहा। जिन डाक्टरों के यहां ओपीडी नहीं चल रही और वहां स्टोर है, उनके स्टॉक जब चेक किये जा रहे हैं।
तो 20 से 30 फीसदी तक दवाएं एक्सपायर मिल रही हैं। दून अस्पताल के भी यही हाल हैं। यहां चीफ फार्मासिस्ट सुधा कुकरेती कहती हैं कि सामान्य ओपीडी बंद होने से दवाओं की एक्सपायरी डेट नजदीक आने लगी तो उन्हें दवाएं कोरोनेशन एवं गांधी अस्पताल भेजनी पड़ी।
कुछ सामान्य दवाओं की स्थिति
दवा पहले अब
ऑगमेटिन 180 200
ग्लूकोज 13 14.5
यूनीनजाइम 52 58
एटेरक्स 32 35
फैबुस्टेट 185 200
ये हैं दाम
विटामिन सी 30-60 (पंद्रह गोली)
आइवरमेक्टिन 70-90 (दो गोली)
जिंक 70-90 (दस गोली)
विटामिन-सी, आइवरमेक्टिन और जिंक की बिक्री में इजाफा
दून जिला केमिस्ट एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष नवीन खुराना के मुताबिक विभिन्न कंपनियों की विटामिन सी एवं जिंक की गोलियां अलग-अलग कीमतों पर बाजार में उपलब्ध हैं। सामान्य दिनों में जहां 20-25 हजार रुपये तक की रोजाना विटामिन सी की गोलियां बिक रही थीं। अब दोनों की एक से सवा लाख रुपये तक की गोलियां बिक रही हैं। आइवरमेक्टिन दवा की मांग भी तेजी से बढ़ी है। पचास हजार तक रोजाना बिक रही है।
आदतों में सुधार : दवाओं की बिक्री में कमी आने की वजह लोगों की आदत में सुधार होने से उनकी सामान्य बीमारियां घटने की ओर भी इशारा करती है। दून अस्पताल के डिप्टी एमएस डा. मनोज शर्मा मानते हैं कि घर से बाहर निकलने एवं भीड़ के संपर्क में नहीं आने से लोग इंफेक्शन से बचे हैं। वहीं, बाहर का खाना बंद होने, फास्टफूड की लत छूटने और घर का पौष्टिक खाना खाने से लोगों की इम्युनिटी बढ़ी है। वहीं, बार बार हाथ धोने एवं साफ सफाई से भी बीमारियों में कमी आई है।
ऑक्सीमीटर की डिमांड पांच गुना बढ़ी
केमिस्ट एसोसिएशन महानगर देहरादून के अध्यक्ष नवनीत मल्होत्रा, सचिव पंकज मित्तल कहते है कि मरीजों के बढ़ने पर पल्स ऑक्सीमीटर की डिमांड काफी बढ़ी है। जहां पहले तक शहर की दुकानों में 30 से 50 ऑक्सीमीटर बिक रहे थे। अब सीधे 350 से 400 तक बिक रहे हैं। इन्फ्रारेड की बिक्री में भी दोबारा से उछाल आया है।
दवा का कारोबार कम होने के पीछे कई वजह है। कोरोना के चलते कई अस्पतालों की ओपीडी बंद है, ऑपरेशन भी कम हुए हैं। संक्रमण के खतरे की वजह से लोग अस्पताल नहीं आ रहे हैं। पहाड़ी इलाकों से मरीज देहरादून आने से परहेज कर रहे हैं। इसीलिए कोविड से जुड़ी दवाओं एवं उपकरणों को छोड़कर बाकी दवाओं का कारोबार 60 फीसदी तक ही रह गया है।
नवीन खुराना, जिलाध्यक्ष, केमिस्ट एसो. देहरादून
रिटेल में विटामिन, जिंक, अस्थमा, शुगर और बीपी की दवाओं की ही मांग रह गई है। कारोबार बिल्कुल आधा हो गया है। देहरादून जिले में ही 40 फीसदी तक कारोबार प्रभावित हुआ है। लॉकडाउन के दौरान तो और भी स्थितियां खराब रहीं थीं। कर्मचारियों को वेतन देने और अन्य खर्च निकालने में दिक्कतों का सामना पड़ा।
नवनीत मल्होत्रा, द केमिस्ट एसो. देहरादून महानगर के अध्यक्ष
सामान्य दिनों में बच्चों के बुखार की दवा एवं एंटीबॉयोटिक ज्यादा बिकती थी। बाजार में दवा कारोबार का 30 से 40 फीसदी हिस्सा एंटीबॉयोटिक का ही होता है। इनकी मांग में कमी है। जिंक, विटामिन कई कंपनियों की दवा आ रही है, अलग-अलग रेट हैं।
पुनीत अग्रवाल, थोक विक्रेता, मेडिकल स्टोर संचालक
सर्जिकल सामान और सामान्य दवाओं की खपत पचास फीसदी तक कम हो गई है। एंटीबॉयोटिक दवाओं की बिक्री न के बराबर हो रही है। केवल इम्यूनिटी बढ़ाने की दवाओं एवं अन्य उपकरणों की बिक्री में इजाफा हुआ है। कारोबार पर भी इसका असर पड़ा है।
गौरव भार्गव, मेडिकल स्टोर संचालक